मेरी यादों की गिलहरी- संजय शेफर्ड

गांव से दूर एक छोटा सा कच्ची मिट्टी का घर था। उस घर के बगल में एक छोटा सा ऑनियन ट्री। जिसके आसपास अक्सर एक गिलहरी घुमा करती थी। सर्द हो, गर्मी, या फिर बरसात। वह हर मौसम में आती थी। थोड़ी देर तक उझल- कूद करती और चली जाती थी।
उसी गांव में भूरे बालों वाली एक सुन्दर सी लड़की भी रहती थी। जिसे लोग गोल्डन गर्ल कहा करते थे। उसकी आंखें गहरी काली थी, भौहें हल्की- हल्की लाल, और पैर बेहद ही छोटे। वह अपने नन्हें कदमों से चलती हुई प्रतिदिन आती। गांव से बाहर बने उस घर के पीछे से छुपकर। उस ऑनियन ट्री के नीचे उझल- कूद करती गिलहरी को देखती रहती थी।
इसी तरह से देखते हुए गर्मी और बरसात के दो सेशन बीत गए। सर्दियां के दस्तक देने की आहट जैसे ही सुनाई दी। उस लड़की के लिए रंग- बिरंगे स्वेटर बुनें जाने लगे। लड़की पहले खुश हुई फिर उदास हो गई। उसकी उदासी में एक कच्ची मिट्टी का घर, एक छोटा सा ऑनियन ट्री, एक गिलहरी भी धीरे- धीरे शामिल होने लगे।
शुरू में घर के लोगों को कुछ समझ में नहीं आया। बाद में लड़की की उदासी और गहरी होती गई तो घर के लोगों को भी चिन्ता होने लगी। फिर भी किसी को नहीं पता चल पाया कि उसकी उदासी की वज़ह ''रंग'' हैं। और लड़की की उदासी और भी बढ़ती गई। उसके बालों से बसंत गायब होने लगा। उसकी सुंदरता में मायूसी घुलने लगी।
रंग भला उदासी की वज़ह कैसे बन सकते हैं ? गिलहरी ने ऑनियन ट्री से पूछा। ऑनियन ट्री ने कच्ची मिट्टी के घर से और कच्ची मिट्टी के घर ने उस भूरे बालों वाली सुन्दर लड़की से। लड़की ने कोई जवाब नहीं दिया। गांव में वापस जाकर खुदको एक कमरे में कई दिनों के लिए बंद कर लिया। और जब बाहर निकली तो उसकी उम्र कई गुना बढ़ चुकी थी।
वह दौड़ी- दौड़ी वापस आई। महज़ तीन दिन के दरमियान कच्ची मिट्टी का घर ढह चूका था। ऑनियन ट्री ने अपनी उम्र खो दी थी। और वह गिलहरी दूर- दूर तक कहीं दिखाई नहीं दी। महज़ एक लम्हें की उदासी के चलते उस भूरे बालों वाली लड़की का प्रेम और प्रेम के सारे गवाह मर चुके थे।
आखिर हम इंसान भला क्यों नहीं समझ पाते कि जिन्हें हम प्यार करते हैं उनकी उम्र हमसे सैकड़ों गुना छोटी होती है। उनके भाग्य में हमारी तरह लम्बा इन्तजार नहीं लिखा होता। वह अपनी उम्र महज़ लम्हें, दो लम्हें में खो देते हैं ...
आखिर हम सबने अपना- अपना प्यार ऐसे ही तो खोया है ?