अमु ग्वाला की कविताएं


अमु ग्वाला की कविताएं एक जिरह की तरह से हैं जो अपनी बात को कहना चाहती है ; अमु अपने मन की बात ; अपनी भावनाओ को उकेरना चाहती हैं ; कागज दर कागज ; पृष्ट दर पृष्टि इनके मन खुलते हैं। यह कभी मां पर कविता लिखती हैं, कभी बापू पर, कभी अपना प्रेम लिखती हैं तो कभी अपने ही व्यथा का सागर। इनका ससक्त पक्ष इनका रुझान और अपनी बात कहने की जिजीविषा है ; कई जगह वाक्य कमजोर पड़ जाते ; कई जगह दिशा का अभाव भी दिखता है। पर शब्दों के जरिये आसमान को छू लेने की कशक भी खूब है। आप भी पढ़े --- 


नाम - अमु (मूल नाम उमा ग्वाला )
जन्म -  इंदौर मध्य प्रदेश में
निवासित है - भिलाई  छत्तीसगढ़ में
शिक्षा - कला निकाय में स्नातक (रविशंकर विश्व विद्यालय ) प्रिंट मीडिया , हिंदी लेखन
कार्यक्षेत्र - आई सी आई सी आई  जीवन बीमा ,व्यवसायी परिवार से सम्बंधित
प्रकाशी कृतिया - प्रथम प्रयास है  हमारा
ईमेल-  umaipru2012@gmail.com

1- मेरा मित्र


हँसता है वो…हँसाता है वो
हमेशा सब को गुदगुदाता है वो

भोली सी है सूरत, वजन है ज्यादा सा
पर पाव भाजी बड़े चाव से खाता है वो

मैं जब भी कहूँ ...
आई एम सीरियस, आई एम सीरियस
इस बात पर भी ठहाके लगाता है वो

जुबान भी सच्ची और दिल भी सच्चा
इसलिए मित्र हमारा कहलाता है वो

आने वाले कल के सपने देखे हैं सुहाने
ख्वाबों को सच कर दिखाना चाहता है वो

दुनिया की सबसे कीमती "चीज़ " पर
सबसे ज्यादा यकीन है उसको

"माँ" से ज्यादा कोई प्यारा नहीं उसको
मुझ पर माँ से भी ज्यादा प्रेम जताता  है वो !!!

2- बापू मेरा प्रेम


नाम की क्या नेमते
जब काम बोलते हों !

तलवार की क्या जरुरत
जब कलम हाथ में हो।

अमूल्य दान की क्या बिसात
जब श्रम ही दान सर्वोपरी हो

सुधार की अहमियत ही नहीं
जब स्वयम में सुधार हो।

जब भी मैं अपने ह्रदय में झांकती हूं
"बापू" मेरे आत्मा के
एक कोने में तुम बसते हो।

बापू आज भी तुम्हें
मैं वही प्यार देना चाहती हूं
जिसमें सत्य, अहिंसा के मर्म बचे हों

3- मेरी माँ


"माँ"
एक ओस की बूंद हो तुम
जो सूरज निकलते ही छुप जाती।

एक ज्वाला हो तुम
जो सारे अंधेरों को हो मिटाती।

रहती जब पलकें नम मेरी।
बस तुम्हारा ही आश्वासन चाहती।

कुछ कमियां उजागर जब मुझमें होती
तो सबसे ज्यादा तुम घबराती।

जीवनपीड़ा जब असहनीय होती
दूर -दूर तक बस तुम याद आती।

देती हो नवजीवन मुझकों हर बार
अपनी बांहों में भरकर।

माँ तुम माँ हो ; चाहिए तुम्हारा साथ
मुझे जीवन भर, सात जन्मों तक।

4 - मौसम


आने दो मौसम के सबसे खुशनुमा पल को
तपती सी धरा  को ठंडक पहुंचाने वाले जल को

आने दो धरा से मिलकर अपने बदले हुए रंग को
बचपन की मिठास लिए चाय की मासूम प्यालियों को

आने दो मौसम के सबसे खुशनुमा पल को

छमछम ध्वनि से अपनी तरफ खिचती हमको
मेरे भीगे मासूम पलों को जो मिलवाती सबको

आने दो मौसम के सबसे खुशनुमा पल को

मन खुश है ; खबर मिल चुकी है मौसम के आने की
"अम्मा " अब हम खुदको नहीं रोक पाएंगे
मन बेताब है आज मुझे इस बारिश में भीग जाने दो

मौसम के सबसे खुशनुमा पल को आने दो
इसी तरह तुम हर बार मेरी तरफ आने दो

5 - एसएमएस सा प्रेम


बोलती आँखों का सच बयान करने वाला है ये
जो सच जुबा से न कहा जाए वही राज कहने वाला है ये

 कभी गम में डूबोता,  कभी चेहरे पर हंसी को बिखेरता है ये
जस्बात की हर भाषा को समझा कर अपना बनाता है ये

आजकल की भागती - दौडती ज़िन्दगी में जब समय नहीं होता
"शार्टकट" में भी काम चलाता ; दिल की हर बात कह जाता है ये

 अपनी नई भाषा में हंसाता, कभी छेड़ता, कभी मनाता है
एक एसएमएस ही तो है जो बिना कहे ही सबकुछ कह जाता है

6- सैनिक की प्रेमिका


तुम मुझसे पूछते हो कि कैसे रोकती हो
अपने प्रेम की व्यथा
क्या तुम्हारा मन मिलने का नहीं होता ?

मैं तो तुम्ही से सीखती हूँ
नियंत्रण करना खुद पर
वर्ना मेरा मन पत्थर कब रहा ?

कभी घंटो बैठकर आईने के सामने
करती हूँ सोलह श्रंगार
कभी शर्माती ,कभी लजाती
कभी खुद को हो नज़र लगाती
करती हूं तुम्हें निच्छल प्यार।

सोचती हूं
काश ये ही वो पल होता
जब साथ तुम्हारा होता

पर जरुरी है प्रेम में वो बंधन
जो इस प्रेम की वेदना से भी परे हो
तुमने बांधा है दामन उस माँ से
जिसने अपने एक ही लहू से सींचा
हम दोनों को

जिसने जीवन को सजाया -संवारा
जिसकी पीड़ा और चीत्कार सुनकर
रोता है मन जितना तुम्हारा
उतना ही हमारा

चुना है खुद उस इश्वर ने तुम्हें
इस कर्म के लिए
मैं तुम्हारे साथ हूं यह भाग्य है हमारा
अन्यथा सबमें कहाँ ये बल
जो माँ की गोदी से उतारकर
माँ को ही दे सहारा ?

तुम में है वो असीम ताकत
जो चट्टान सा हिरदय रखे हो
वर्ना कमजोर  कंधो पर थोड़ी
ही रक्षा का भार सौंपा जाता ?

अब कहो ?
अब कहो ? कैसे न करू प्रेम
कैसे ना बरसाऊ
खुदसे ज्यादा तुम पर नेह ?

7 - प्रकृति


जैसा स्पर्श भावनाओ का है
वैसा ही स्पर्श प्रकति का है

हमने प्रकृति की भावनाओ को नहीं समझा
ना ही संरक्षण को अपना हथियार बनाया
कलंकित किया प्रकृति को
और कह दिया यह धरा हम सी नहीं

कभी सोने की चिड़िया था देश
धरा पर लहराती थी
हरी भरी फसलें
औधोगीकरण से हमने प्रकृति का पर कुतरा
कह दिया प्रकृति हमारे लायक ही नहीं है

जिसे देखकर आँखों को ठंडक
दिल को सुकून मिलता है
वह ख्वाबों का जंगल बस
कागजी किताबों में बस्ता है

अच्छा ही हुआ कि
हम खुद ही परेशां है
इस खिलवाड़ से
वर्ना बेचारी प्रकति खुद ही सोचती कि
हम अब इस दुनिया के काबिल नहीं !

8 - आसमान और धरती का प्यार


नभ है ऊपर और नीचे है जमीं
दोनों ही में नहीं है
समानता की कोई कमी

सौष्ठव का गुरुर है यदि नभ तो
धैर्य की परिधि है भूमि

यदि अपनी चाहत को पहुचना है
ऊँचाई तक तो
कभी न कम होने देना आँखों से नमी

क्रोध से धधकते हुए स्पर्श को
सहन करती है भूमि
तो अपनी नम आँखों से स्नेह भी
आसमान का पाती है
अपनी धधकती छाती पर

यदि प्रेम की इस परिभाषा को
समझ पाए हर कोई
प्रकति के अवांछनीय प्रेम में
कभी भी नहीं होगी कोई कमी

9 - हमारी उड़ान

पहले हम मिले
फिर मिले हमारे विचार
तकरार तो बार -बार हुई
फिर भी सामने आये
हम एक दुसरे के बार -बार

इश की रचना हम तुम हैं बराबर
फिर भी द्वन्द चला आ रहा लगातार

मुश्किलों का सामना हम भी करते है
और तुम भी
जरा मौका तो दो एक बार
उम्मीद का दिया लेकर चल रहे है
शोषण की आंधी में हर बार

आज वक्त हमारा है
और जिन्होंने  ये वक्त दिया है
उनको नमस्कार उनको नमस्कार

बस जरा सा साथ दो
हम भी है
इस रचना के हकदार
ऐसा सुनहरा जीवन
मिलता नहीं  बारम्बार !


10 - प्रेम श्रृंगार


मन बाँवरे
कुछ ऐसा इंतजाम हो जाये
घन बरसे मन को भिगोये
बूंद के घूंघरू पैरों में बंधकर
तन मयूरा के नाच नचाये

उनके स्पर्श के स्मरण को बूंदें
छुकर मन को प्रफुल्लित कर जाये
हर सौंधी महक मदहोश कर
तन और मन को महका जाये

नाचना तो  हमें आता ही नहीं
फिर भी ये कलरव हमको नचाये
जादू चलाया है ऊपर के जादूगर  ने
फिर हम पर उसका जादू
भला कैसे ना असर दिखाए ?

तन -मन की इस मदहोशी से
भला कौन बचाए
मन बाँवरे
कुछ ऐसा इंतजाम हो जाये!