संवेदनाओं के कवि हैं संजय शेफर्ड

संजय शेफर्ड मूल रूप से संवेदनाओं के कवि हैं। उनके कविताओं में संवेदना का यही भाव बार-बार उभरकर सामने आता है। कविता संग्रह ''पत्थरों की मुस्कराहट'' में वह जीवन के तमाम पहलूओं को रेखांकित करते हुए अक्सर दो-चार होते हैं। उनकी कविताओं में एक तरफ समय की सार्थकता है तो दूसरी तरफ आत्मिक पीड़ा की एक ऐसी बानगी जो गाहे-बगाहे हमारे समाज में दिखाई देती है। संग्रह की पहली ही कविता ''संजीदा घाव'' में उन्होंने जिस तरह से विम्बों का सहारा लेते हुए कविता की संरचना की है वह सिर्फ संजय शेफर्ड ही कर सकते हैं। ऐसा नहीं है कि संजय शेफर्ड पत्थर में मानवीय संवेदना को ढूंढने वाले पहले कवि हैं, इससे पहले भी पत्थर के विम्ब लेकर कई तरह की रचनाएं की गईं हैं लेकिन यहां कविता के तत्व, संदर्भ, भाषा और शैली सभी अलग हैं, और अलग होते हुए भी स्त्री संवेदना का जो भाव दर्शाते हैं वह शायद ही किसी ने दर्शाया हो। संग्रह में स्त्री विषय पर आधारित ''सलीब पर औरत'' ''ईश्वर की चुप्पियां'' ''सम्पूर्ण स्त्री'' ''औरत पुरुष फर्क'' '' आजीवन सुहागन'' ''नामुराद सपने'' जैसी कविताएं बहुत ही प्रभावी ढंग से उभरकर सामने आती हैं।

स्त्री के अलावा उनकी कविताओं का दूसरा और तीसरा विषय क्रमश प्रेम और प्रकृति है। संजय शेफर्ड की प्रेम कविताएं मानव मष्तिष्क की सहज अनुभूति से कहीं आगे की जान पड़ती हैं। उन्होंने अपनी कविताओं में जमकर प्रेम की बात की है और प्रेम के साथ ही दैहिकता की भी। संजय प्रेम की बात करते हुए आत्मा की बात करते हैं और उससे पहले दैहिकता की। कई बार कविताओं को पढ़ते हुए बार- बार देह की आवृति से ऐसा बोध होता है कि वह कह रहे हों कि प्रेम का एक मात्र रास्ता देह है, और यह कई मायने में सच भी है क्योंकि आत्मा से होकर प्रेम पहुंचा जा सकता है परन्तु देह से होकर प्रेम का रास्ता तय होता है। ऐसे में उनकी कवितायों में दैहिकता का जो आवरण है वह बहुत ही सहज हो जाता है। इस सन्दर्भ में दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि वह देह की बात जहां भी, जिस भी कविता करते हैं, वहां सिर्फ देह की बात नहीं करते हुए प्रेम और आत्मा तक भी पहुंचते हैं। कविता ''देह की गहराइयां '' में जिस तरह निष्पक्षता के साथ देह के आकर्षण में पनप रहे प्रेम को सम्प्रेषित करते हैं वैसा विरले लोग ही करने का साहस जुटा पाते होंगे। संग्रह में प्रेम और दैहिकता के आवरण में '' देह का मर्म'' ''देह की उदासियां'' ''प्रेम कण'' ''थोड़ी सी उम्र'' ''संवेदनाएं'' ''खामोश नदी सी'' ''सूखे होंठ'' '' कोई तो बात होगी'' ''शिल्पी और शिल्प'' ''पहला प्यार'' ''हमारा टूटना'' ''जीवन की गोधूलि'' ''मैने देखा है'' ''स्मृतियों में प्रेम'' ''स्वप्निल प्रेम'' ''प्रेम धागा'' जैसी कई महत्वपूर्ण और पठनीय कविताएं हैं।

संजय शेफर्ड की कविताओं का तीसरा विषय प्रकृति है। संजय शेफर्ड युवा हैं और उनकी कविताओं में एक युवा की बेचैनी गहरे रूप से स्पष्ट होती है। प्रेम की बात करते हुए देह की बात करते हैं लेकिन दैहिक प्रपंचों में खो जाने की जरा सी भी हड़बड़ी उनमें कहीं भी दिखाई नहीं देती। वह प्रेम को दैहिकता की चासनी में भिगोकर जिस सहजता के साथ अपनी बात करते हैं इसके विपरीत स्त्री और प्रकृति की बात करते हुए बहुत ही गंभीर हो जाते हैं। शायद यह उनका विशेष गुण है, इसीलिए उनके अंदर का कवि बार-बार भविष्य को लेकर आशंकित होता है, तमाम तरह के संशयों, संदेहों से होकर गुजरते हुए जीवनदायिनी चीजों के प्रति सचेत होता, सचेत करता दिखता है। कविता ''नाभि में पत्थर'' में वह जिस तरह से प्रकृति के बिगड़ते रूपों को अपनी लेखनी के माध्यम से परिभाषित करते हैं वह एक बहुत ही बड़ी विषमता की ओर इशारा करता है और अंतत जिस तरह से वह प्रकृति की तुलना कंक्रीट की सड़कों पर भागती एक गर्भस्थ स्त्री से करते हैं, वैसा विम्ब भी कभी-कभार ही देखने, सुनने, पढ़ने को मिलता है। प्रकृति पर आधारित कविताओं में '' पत्थर हो जाना'' ''निर्दयी संसार'' ''सौंपता हूं धरती'' ''प्रकृति की गोद'' आदि कविताएं संग्रह की महत्वपूर्ण कविताएं कही जा सकती हैं।

प्रेम, प्रकृति और स्त्री के इतर कुछ अन्य विषयों पर भी आधारित कविताएं भी संग्रह में रखी गईं हैं। ''प्रजातांत्रिक त्रासदी'' ''श्रंदांजलि'' '' देवों ! संभालो'' ''अंतिम पड़ाव'' '' मुठ्ठी भर आग'' ''बेआवाज़ टूटना'' जीवन पथ'' ''सुबह होगी'' जैसी कविताएं जीवन के तमाम रूपों का बोध कराती महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। ''प्रजातांत्रिक त्रासदी'' और ''श्रंदांजलि'' दोनों ही कविताएं हमारे सत्ता और राजनीति पर प्रहार करती हुई कविताएं हैं। जिसका प्रहार सृजनकारी होते हुए भी बेहद मारक है।

भाषा और शिल्प की बात करें तो संजय शेफर्ड कविता नहीं लिखते ऐसा जान पड़ता है कि वह अपने पाठकों से बातचीत करते हैं। बेहद ही सहज, बेहद ही सरल, बेहद ही मार्मिकता के साथ अपनी बात कहते हुए अपनी संवेदनाओं और अपनी भावनाओं को जाहिर करते हैं की जो भी पढता है उनका अपना हो जाता है। उनके पास शब्दों का समुंदर है, वह हिन्दी के शब्दों का उपयोग करते हैं लेकिन उर्दू के शब्द प्रयोग से भी नहीं हिचकते हैं। जैसा की मैंने ऊपर कहा कि संजय शेफर्ड की कविताएं युवा मन की कविताएं हैं। उसी के सन्दर्भ में यह कहना नहीं भूलना चाहता कि इन कविताओं का प्रौढ़ होना और अपनी सम्पूर्ण परिपक्क्ता का हासिल करना अभी भी शेष है। संजय के सामने विस्तृत फलक होते हुए भी इस परिपक्क्ता को हासिल करने की अहम् चुनौती है, और अब देखना यह है कि वह कितने समय में हासिल कर पाते और अपने आपको स्थापित कर पाते हैं।

- शिखा पाल, देहरादून