विशाल कृष्ण सिंह की कविताएं

विशाल कृष्ण सिंह को हम हिंदी कविता में एक उभरते हुए नाम के रूप में देख सकते हैं। विशाल कि खास बात यह यह कि वह अपनी भावनाओ, समयकाल और परिस्थितियों को कविता के माध्यम से बेहद ही सहजता से वयक्त कर जाते हैं। सच कहें तो विशाल जीवन कि कविता लिखते हैं। जीवन से जुड़े सच लिखते हैं। जीवन कि सजीवता लिखते हैं। उनकी कविता का नयापन इतनी सशक्ता लिए हुए है कि आप उनसे प्रभावित हुए बिना रह ही नहीं सकते। खुद पढ़िए और बताइए कैसी लगी आपको यह कविताएं -


1)    नही रख पाता .
.............................
मै नही रख पाता
तुम्हारी कही कई बातें .
वक्त पर खाना/ रूमाल रखना/ माँ को फोन कर लेना../

भूल जाता हूँ
तुम्हारी कही कई चीजें / फैसले/ सलाह
जो मेरी खुशी को लिए तुम देते हो हमेशा ./

फिर भी
मन के तहो में तुम धड़कते ही रहते हो..
धमनीयो मे तुम्ही बहते हो
जागने से सोने तक..../
हल्के रंगो मे उभर आती हो तुम मन में ..//
बस याद रहता है
तुम्हारा स्पर्श /नेह/समर्पण .//

.मेरा निवेदन रख लो आज प्रिय.
मेरे लाख गलतियों
पर भी..
ना होना नाराज
मुझसे
कि मै उतना समझ नही पाता
जितना समझना चाहिए /
..कि तुम्हें खोना
खुद के खोने जैसा है .//

माफ कर देना मुझे
और ..
समझा देना मुझे फिर से
वो सारी बातें जो मै बार बार भूल जाता हूँ


2)    सपने देखो ना

भारत..
अच्छा लगता है.
जब तुम सपने संजोते हो./

मै जानता हु
तुम व्यथित हो.
बेचैन हो.
नही समझ पाते
क्या कहना चाहिए

जब गावँ के बच्चे को
शहर के भाषाई ज्ञान मे
जूझते देखते हो../

जब योग्यता पैसे से हार जाती है /

पीड़ा मे सुन्न से पड़ जाते हो
..
..जब छोटु को केतली मे पिघलते देखते हो.
.मुन्नी की खेत मे फेकी लाश देखते हो../
सविंधान की दीमक सी किताब देखते हो /
अंगूठे भर इंसान देखते हो /

/मै नही चाहता मुझमे..
हिन्दु य मुसलमान
दौड़े.
..बिहार , या महाराष्ट् दौड़े /

मै तो कण कण तुम्हे सौपना चाहता हूँ ..
मै तो सिर्फ तुम्हे जीना चाहता हू

/सपने देखो
...भारत..
अच्छा लगता है.
जब तुम सपने संजोते हो./

3)   गुलाम

गुलाम नही जान पाया
कैसे झुका दि गयी
किले की दीवार
उसके सीने की तरफ //

उसने झट.से
अपना सीना फुलाया ,
जिन्दा रहने के लिए /
और राजा ने बचा ली..
दीवार ढ़हने से.//

गुलाम के पैरों की बेड़िया ,
.....हर रात उसके बेटे के सपने मे आने लगी..
और बेड़ियो से दबा जाता
बेटे का गला ..सपने में
बढ़ जाता रक्त दाब
हृदय.का../
बेटे का..//

सल्तनत के शौकीन राजाओ ने..
भाप लिया ..
बदलता मिजाज..

और
खोल दि बेड़ीया पैरों की..
पर घोल दिये
उसके सारे अधिकार ..
बोलने के !
लिखने के !
असहमती जताने के../
और
चलती रही तानाशाहीयत //

तुम नही समझ सकते
उसकी अन्तःस्थिती /
यह प्रेम नही..
जिसमे डुब कर
ईश्वर को पा लोगे //

यहाँ शुन्य है
घुटन है
यहाँ उतना ही आक्सीजन
छोड़ा जाता है
जितने में रक्त गुजारा कर सके.. //

( गुलाम कल भी थे
और आज भी..
तुम खुश हो
क्योकी तुम्हे भ्रम है ...

.....कि तुम आजाद हो..
.....कि गुलाम बेड़ीयो मे होते है..
.....कि अब सल्तनत नही होती ..)



4)    तुम्हारा इठलाना

तुम्हारा इठलाना.....बचकानापन..../
मुह फुलाना...प्यार जताना...
ईष्या करना .....भावुक होना.../
प्यार मे फना होना...
घर की लाज रखना.../
कहे सुने हर शब्द का मतलब निकालना...
या ढुंढ़ते रहना.//
किताबो मे खो जाना..
तैर कर ख्यालों की नदी मे पहुच जाना..
अपने राजकुमार के पास...
जो सिर्फ तुम्हारा है..///
ये सब आकर्षित करता है मुझे..
तुम्हारी तरफ...
~विशाल कृष्ण

5)    पापा

पापा... मै क्या कहूँ
हर शब्द ही सिखा है आपसे..
भावनाओ के उतार चढ़ाव मे
सँभलना सिखा है आपसे...

जब मै नन्हा बच्चा था ..
आपके गले झुलता रैहता था
गोद मे बैठ जाता था..
अपनी उलझने छिपा..
चेहरा आपका ..
मेरे संग हँसता था..

आपके आने के वक्त पर..
किताबे खोल बैठ जाता था..
मुझे पढ़ता देख..
टाफी दे जाते थे..
.....
क्यो ओझल कर दिया आपने
वो चेहरा जो हँसता था ...
अब क्यो हर पल चुप रहते है.
क्यो बातें कम करते है..
रात की दिवार घड़ी को देख देख
क्या सोचते रैहते है
पुछता हुँ जब भी
हँस के चुप हो जाते है..।

बड़ा मै भी हो चला हुँ
बाते दिल की समझ रहा हुँ..
आपके और मुसीबतों के बीच
अपनी जगह ढुढ़ रहा हुँ .

कि देखा है आपको
मुसीबतों से लड़ते हुए..
समझौते की सिढ़ी चढ़ते हुए..
कि मुझे सौप दो..
जिम्मेदारियों का सन्दूक ..

आप बस आराम करे..
घडी को देखना छोड दे
मुझे गोद मे अपनी सोने दे..
टोफीया बस लाया करे..

आपका बच्चा लड़ेगा ..अब
आपकी जगह..
हर तकलीफ से..
आपने सिखा दिया है
जितना हर मुसीबत से..

पापा ..मै क्या कहुँ..
हर शब्द सिखा है आपसे..
भावनाओ के उतार चढ़ाव मे..
सँभलना सिखा है आपसे..///

6)    मुझको कोई नाम ना दो...!!

मुझको कोई नाम ना दो...!!
दिल के घरौंदे मे
अब कोई
हिन्दु मुसलमान ना दो..!
जवा बेटा मेरा कट गया..
जला दिया उसके बचपन का घर..!!
है अगर ये इंसानो का काम..
तो...
जानवर कैह दो मुझे
पर.. " इंसान " का नाम ना दो..!!

किसी ना किसी मोहल्ले से
आधी रात को...
तलवार और तमंचो की
बारीश होती है.!!
राम रहिम के शोर मे..
"गीता -कुरान का नाम ना लो...
मुझको कोई नाम वा दो..!"

तीर्थ को जाऊ..
या..
उजरा घर बसाउ..
क्या जबाब उसके अब्बा को बतलाऊ...!!

कुछ कहो..
धर्म के ठेकेदारो..!!!

बहुत हुई ..
बरचस्व की लडाई ..,!!
मन्नत है ..
मरने से पहले..
एक अमन का पैगाम तो दो..
पर मुझको कोई नाम ना दो... !!


7)   स्वीकार लेना..मुझे  

स्वीकार लेना..मुझे
मेरे ही रूप मे ...
और... सौप देना
अपनी करवटें भी..
मेरे मुताबिक..
मानो कैह दिया हो..खुद से..
कि जो भी तुम्हारा है..मुझसे है..//

मान लेना मेरे झुठ को..
स्वीकारना मेरी बात निर विरोध ..
मानो प्रश्नों की किताब
..कभी रखी ही नही मेरे लिए...//

मुझ मे ही देखना आसमान ..
मुझ मे ही ढुंढना अपनी जमीं ...
मानो ..
मै क्षितिज हुँ तुम्हारे सपनों का//

छिन लेना चाहो..
मेरी मुसकिलै ..
और ना देना चाहो.
.अपनी एक अरचन भी..
मानो ..
मेरी खुशी ही मकसद हो तुम्हारा..///

क्या कहुँ ..
तुम्हारे समर्पण से..//
कटता जा रहा मैल मन का..
और जुड़ रहा हुँ ..
अपनी नसों से.
.नाम से..
ना जाने कई दिनो के बाद...



8)  सफर के शब्दो मे..

सफर के शब्दो मे..
घुलते जाते..
शब्दो के सफर ...!!

मै कितना पिछे ..
वो कितना आगे..
गिणती मे उलझे शब्द ..!!

आरक्षण से नाराज मेरे शब्द ..
मित्रो के निज हित के मौन शब्द ..
सड़क के गढ्ढो से उखड़े उखड़े शब्द ..!!

देश प्रेम के किताबी शब्द ..
नक्सल और आतंक मे मरते शहीदो के शब्द ..!!

फिर दौड़ लगाते शब्द ..
बाहुबली के दोहरे शब्द ..
फुसलाते शब्द ..
अखबारो के चमचमाते शब्द ..!!
हमको जोकर कहते शब्द ..
विरोध मे उठते शब्द ..
अनशन पर बैठे शब्द ..
ऩीबू पानी पीते शब्द ..!!

अखबारो से हटते शब्द ..
रसोई मे पकते शब्द ..
दिनचर्या मे ढलते शब्द ..
रैली की जाम मे..
बहाने बुनते शब्द ..!!

अनुरोध मे गरीब के शब्द ..
आश्वासन की चादर मे..
डराते धमकाते सरकारी शब्द ..!!

तामाशबीनो के शब्द ..
आलोचक के शब्द ..
कवि के शब्द ..
जैसे पागल के शब्द ..!!

तेरे शब्द या मेरे शब्द ..
मन तलाशता ..
तस्सली के शब्द ..


9)    छोटी जाति का किसान


उसका जाति बोध..
मेरी कलप्ना नही./
मेरी निंसकोच कही ..
एक स्थिति है//

वह ऊची आवाज मे..
झुकी नजर मे..
जाता रैहता घर घर..
अपने खेती का खर्च लेने को..
और रोता है ऱोना ..
सुखा./ठण्ड या बाढ़ का..
मौसम के हिसाब से///

वह सोचता है अभिमान से..
उसके ना होने पे..
कौन करेगा खेती..
इन बडे लोगों की./
पर बेतुकी कैह इन बातों को..
खिन्न हो उठती उसकी पत्नी..//

वह नही जानता क्या भाव ..
बिकती है उसकी मेहनत..
शहर के बाजार मे./
वो तो बस देखता है..
्अपने हिस्से की उपज / सपने ..
एक नयी बैल खरीदने के..
टुटी खाट की मरम्त के..
दिवाली मे नये कपड़ो के..//

वो पानी देता..
एक बैल उधार लाता..
हल लगाता../
कुछ मुनाफा हो..
ये सोच ..
बुआई कटाई मे बेटे को भी लाता ..//

पर दिल नही लगता ..उसके बेटे का.
खेती गृहस्थी मे..
दुसरो के घर जानो मे..
नीचे बैठने मे..
मालिक मालिक कैहने मे..///

अतः वो सिख रहा है..
ईट जोड़ने का काम..
मुनाफे का काम../
और समझाता है पिता को..
कि..
खरीद लेंगे ..
चावल दाल ..
इस साल..
संग काम कर..
जो पैसे मिलेंगे ..
ईट जोड़ कर.,//

पर क्या दिल लगेगा..
पिता का..
किसान का..
मिट्टी की जगह ..
रेत मे..//

सोचते सोचते..
नींद नही आयी..
आज बड़ी देर तक.


10)    अब्बु..


~ मेरे भाई
याद है....तुझे ..ै
वो साइकल की घटना ..
भागना तेरा मेरा पंचर टायर के साथ../
और बचपन मे एक बार..
छोड़ आया था मै..
दुध का टिफिन ..
बीच रास्ते..
क्योकि तय.हुआ था
आधा रास्ता तु लेकर जाएगा ..//

~हरा देता मुझे कैरम में ..
और चिढाता रहता घण्टों ./
मै दिखाता नाराजगी ..
.बिना पलके गिराए../
और कैह देता तु झट से .
" अबे आलू इतना गुस्सा क्यो करता है "
रूकती नही तेरी हंसी..
और हंसी आ जाती मुझे भी.. //

~ लम्बी चलती रहती अपनी बातें
छत के कोने पर....'
गंगा के घाट पर../
रोकना पड़ता ना खत्म होती बातों को...
सबके गुस्से से..
ठण्डे हो रहे खाने के लिए..
दुसरो की शान्ति के लिए..//

~हस देते ..
एक दुसरे को देख
.थोड़ी थोड़ी चुप्पी के बाद...
युही
गिलास लुढ़कने पर/
पापा के बुलाने पर../
मम्मी के चिल्लाने पर.।

तु सुनाता रहता ..
शाहरूख आमीर की कहानियाँ..
ढेरों डायरेक्टर के नाम...
जो मुझे याद नही हो पाये ..आजतक...///

~ मै तलाशता तुझे..
यहाँ वहाँ
नयी कविता ..नये जुते ...नयी जिंस ...
हाथ मे लिए..।

तु हमेशा बचा लेता..
आधी जलेबी ..
एक टुकड़ा समोसा..
अन्तिम चम्मच मीठे दही की..
मेरे लिए//

~अब नये जगह..नये शहर मे.
.बहुत य़ाद आता है...
दुध का टिफिन ..कैरम की गोटी../
आलू , मीठी दही../
छत का कोना...दर्जनों कविताऐ/.
तेरी हसीं और तु.. ///

~ तु ही आलोचक ..
तु ही समर्थक.
तु ही पथ प्रदर्शक है..
तु ही अनुज ..
तु ही अग्रज..
तुझसे ही जीवन है..///

विशाल कृष्ण....